अनजानी शक्ति
भगवती सक्सेना गौड़
आज रवीना को टहलने में अँधेरा हो गया था। पर आदत से मजबूर वह आगे बढ़ती गयी। चारों ओर बरसों पुराने विशाल नीम के पेड़ और पीपल के पेड़ों की लंबी क़तारें थीं। कहीं-कहीं स्ट्रीट लाइट जल रही थी, कहीं घुप्प अँधेरा भी था। तभी उसे लगा, किसी ने उसे रोका . . . “बेटी तुमसे कुछ कहना है, मैं एक काम अधूरा छोड़ आया, किसी तरह वह काम पूरा कर दो। बेटा बेरोज़गार था, मेरी पेंशन से घर चलता था। बढ़िया पेंशन आती थी, बेटा अय्याश हो गया था, अच्छा खाना, अच्छा पीना, उसके शौक़ थे। इकलौते होने के कारण उसकी माँ ने उसे शह देकर बिगाड़ दिया था। मेरी दूरदर्शी निगाहों ने बहुत पहले इसे पढ़ लिया था और रिटायर होने पर मुझे एक मुश्त रक़म मिली थी। वह मैंने अपने और पत्नी के नाम पर रखकर उसके एफ़डी के काग़ज़ मंदिर में लक्ष्मी जी की फ़ोटो के पीछे रख दिये थे। तीन महीने पहले एक एक्सीडेंट में हम पति-पत्नी समाप्त हो गए, पता नहीं, बेटा, बहू घर कैसे चला रहे होंगे? अब मेरी आत्मा तड़प रही है, कैसे उसके सुपुर्द करूँ।”
तभी रवीना को महसूस हुआ, वह तो अकेली खड़ी है, यहाँ कोई नहीं है।
घबराकर घर लौटकर आ गयी। सरकारी नौकरी में पति थे, उन्हें भी इस शहर में आये अधिक दिन नहीं हुए थे, किसी से अधिक परिचय भी नहीं था।
रातभर रवीना को नींद ही नहीं आयी, ये क्या था, सोचते ही रह गयी।
सुबह फिर चाय के बाद दिमाग़ में एक एक बाते घूम रही थी, अचानक उसने मेड से पूछा, “तुम कितने दिन से इस मोहल्ले में हो, कैसे लोग हैं यहाँ रहने वाले? मैं तो किसी को नहीं जानती।”
“ठीक हैं, बीबी जी, आप ऐसे क्यों पूछ रहीं, किसी से कुछ शिकायत है क्या?”
“नहीं नहीं, मेरे साथ एक वाक़या हो गया, किसी से घर में बोल नहीं पा रही, तुमसे बताती हूँ।”
रात की आधी बातें ही मेड से कह पायी कि वह बोल पड़ी, “अरे ये तो वर्मा जी की बात कर रहीं क्या आप? मंदिर गए थे और लौटते हुए एक्सीडेंट में दोनों समाप्त हो गए थे।”
“सुनो मेरे साथ चलोगी, परिचय करा देना।”
“चलिए।“
रवीना पहुँच गयी वर्मा जी के घर . . . प्यारी सी बहू के साथ कुछ बातें हुईं, उसे पता चला कि ये सिलाई में होशियार है।
पूरे मोहल्ले के लोग इससे सलवार, सूट, ब्लाउज सिलवाते हैं। जिससे घर का काम चलता है, क्योंकि घर निजी है।
अब रवीना सोच में पड़ी थी, एक अनजान को कैसे बोले कि पूजा के स्थान पर कुछ है। घर देखने के बहाने पूजा घर तक गयी, और बोली, “लग रहा है, अपने काम में व्यस्त रहती हो, कल पूरे मंदिर की सफ़ाई करना। कई बार सफ़ाई करते रहने से घर में बरकत आती है।”
घर आकर रवीना को बहुत शान्ति मिली और वह आत्मा, परमात्मा में विश्वास करने लगी।
दूसरे दिन वर्मा जी के सुपुत्र आकर उनके चरण स्पर्श कर कहने लगे, “आप पापा को पहले से जानती हैं क्या?”
“नहीं बेटा, मैं तो पहली बार इस शहर में आई हूँ।”
“तब तो आप में कोई शक्ति ज़रूर है। आपके कारण एक बड़ी रक़म मुझे मिली।”
और रवीना चुपचाप सुनती रही, उसने कुछ बोलना ज़रूरी नहीं समझा।