कर्मठ

भगवती सक्सेना गौड़ (अंक: 236, सितम्बर प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

अक्षरा जैसे ही ऑफ़िस से आई देखा मम्मा बिस्तर पर सोई हैं। अचानक जाकर सिर पर हाथ रखकर पूछा, “क्या हुआ, ठीक तो हैं।”

तभी दोनोंं बच्चे भी खेलकर आ गयी, “क्या हुआ नानी को?” 

70 वर्षीय नानी अभी तक घर-बाहर हर तरफ़ अपनी रेस जारी रखती थी, तलाक़शुदा बेटी नौकरी पर व्यस्त रहती थी। दोनों बच्चे अक्षय और आरावी नानी के साथ मस्त रहते थे। 

घर के हर छोटी-मोटी चीज़ ख़राब होते ही फोन करना, गैस, फ़्रिज, वाशिंग मशीन सब नानी के ही ज़िम्मे था। घर में कोई पुरुष तो था नहीं। बेटी अक्षरा सब जानती थी कि मम्मा ने जवानी में बहुत कष्ट सहा है, पापा चालीस वर्ष के ही थे, और शराब की आदत ने उन्हें खोखला कर दिया और वो स्वर्गवासी हो गए। मम्मा ने कभी किसी से छुपाया नहीं, साफ़ बोला, “उनके जाने के बाद मैंने जाना जीवन की ख़ुशियाँ क्या होती हैं। उन्होंने तो पत्नी को ग़ुलाम बना कर रखा था, पर बाद में गजेटेड अफ़सर बेटी ने मुझे हर ख़ुशी दी।” 

आज वही अक्षरा की मम्मा बिस्तर पर निढाल पड़ी थी, पता नहीं कैसे, उनकी छठी इन्द्रिय ने उन्हें इत्तला दी। उन्होंने बेटी को बुलाकर कहा, “सुनो, मुझे ऑर्गन्स डोनेट करने हैं, प्लीज़ फोन करो।”

बेटी ने फोन किया। दो ऑफ़िसर्स फ़ॉर्म लेकर घर ही आ गए, बहुत देर तक बैठकर पूछताछ करते रहे, उन्होंने अपनी आँखें, लिवर किडनी सब दान करने का फ़ॉर्म भरवा दिया, किसी तरह सिग्नेचर भी कर दिए। 

थोड़ा बहुत रात में खा कर सोई और सुबह उनकी आँखें नहीं खुली। 

अक्षरा मन ही मन सोच रही थी, जीवन भर मम्मा कर्म करती रहीं, अब उनके अंग भी क्रियाशील ही रहेंगे। 

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