मिठाई

भगवती सक्सेना गौड़ (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

अचानक कॉल बेल बजी, राजेश जी ने जल्दी से मास्क लगाया, दरवाज़ा खोलने चल दिये, बड़बड़ाते जा रहे थे, दोपहर 2 बजे कौन आ गया।

"नमस्ते, सर जी, कैसे है आप?"

"मैंने पहचाना नहीं आपको, नज़र भी कुछ कमज़ोर हो रही है।"

"पहले तो चरण स्पर्श करूँगा, फिर परिचय दूँगा, मैडम है कि नहीं, मैं देवाशीष सेन, पच्चीस वर्ष पहले वो छोटे से शहर के आपके ऑफ़िस का सेक्रेटरी। मैडम ने मुझे कंप्यूटर के बारे में एबीसी सिखाया था और आज कई कोर्स करने के बाद मैं बढ़िया सर्विस में हूँ।"

"अरे सुनो, कहाँ हो , देखो दादा आया है।"

और साड़ी सम्हालती रजनी ने कहा, "आओ दादा, बहुत अच्छा लगा, अब तो कोई त्योहार में भी आता नहीं, बच्चे विदेश चले गए।"

"मैडम लीजिए, ये मिठाई और ये दीवाली गिफ़्ट आप लोगों के लिए लाया हूँ। हर दीवाली मैं आप लोगों को याद करता था, वो ऑफ़िस के दिनों में, दीवाली के एक दिन पहले अलमारी के ऊपर मिठाई के चमकते डिब्बे दिखते थे, और हम सब लड़के दिन भर उनको देखकर ख़ुश होते थे। सर, हम सबको शाम को दिवाली की बधाई के साथ मिठाई और उपहार देते थे; उस दिन की ख़ुशी के साथ सर का चेहरा हमेशा मेरे ज़ेहन में रहा। मैं पुराने शहर आप लोगों को ढूँढ़ते हुए गया, बहुत पूछने पर आपके एक रिश्तेदार से ये पता मिला।"

दोनों राजेश और रजनी बोल पड़े, "इतने वर्षों बाद तुम इतना कुछ याद रखकर बहुत कुछ लेकर हमसे मिलने आये, अब तो शायद जहाँ दिल मिलेलें, वहीं सच्चे रिश्तेदार होते हैं।"

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