मोगरे के फूल
प्रकाश मनु
मैंने उगाए कुछ मोगरे के फूल
आए उमगकर मेरे गमलों में
पूरे घर भर को महमहाते
दूधिया उम्मीदों के
ढेर-ढेर मोगरे के फूल
हम हैं खिल-खिल
खिलर-खिलर फूल
खिलखिलाहटों से भर देंगे घर-आँगन
बिलकुल नटखट बच्चों की तरह . . .
बोले नन्ही-नन्ही दँतुलियों से हँसते
मोगरे के फूल
आज सुबह
दो दँतियाँ दिखाई पड़ गईं
एक नन्हे नटखट शिशु मोगरे की
कि जो था ढेर सारे पौधों के पीछे छिपा
जैसे कोई चुलबुला शरीर बच्चा
लुका-छिपी खेल रहा हो
और खेलते-खेलते अचानक भीड़ के पीछे से
पुकार उठे
कि यह मैं हूँ—मैं यहाँ हूँ पापा,
और मार तमाम लोगों की अपरंपार भीड़ के बीच
जिसकी दंतुल हँसी
दूर से नज़र आती हो!
और उस नन्हे मोगरे की दंतुल हँसी
के चमकते ही
हँसे सारे मोगरे के फूल
एक साथ . . . एक साथ,
जैसे यों ही वे पूर्ण होते हों।
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