बारिशों की हवा में पेड़ 

01-01-2024

बारिशों की हवा में पेड़ 

प्रकाश मनु (अंक: 244, जनवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

अभी-अभी तो शांत खड़ा था
यह सामने का गुलमोहर 
पुरानी यादों की जुगाली करता
ख़ुद में खोया-सा, गुमसुम
 
पर चलीं ज़िद्दी हवाएँ बारिश की
झकझोरती देह की डाली-डाली, अंग-अंग 
आईं मीठी फुहारें 
तो देखते ही देखते दीवानावार नाचने लगा वह 
एक नहीं, सौ-सौ हाथ-पैरों से
नचाता एक साथ सैकड़ों सिर हवा में
जो अभी-अभी प्रकटे हैं पावसी हवाओं में
  
एक साथ सौ सिर झूमते-नाचते हवाओं में 
ता-थैया, ता-ता थैया
नाच, नाच मयूरा नाच . . .! 
पेड़ नाच रहा है मोर-नाच
हवाओं में एक सुर एक राग— 
नाच . . .! 
पोर-पोर में भर के बाँसुरी का उन्माद, 
चाँदनी रात का नशा
नाच! 
हाँ-हाँ नाच, बस, नाच। 
 
और अब नाच रहा है पेड़ 
ऐसी ग़ज़ब उत्तान लय में
कि एक साथ सौ-सौ झूमते-झामते सिरों से
सौ-सौ हाथ-पैरों में बनाए लय 
और एक मस्ती का सुरूर
एक साथ . . . एक साथ . . . एक साथ! 
 
यों ही नाचा पेड़ 
झूमता-झुमाता धरती-आसमान
नाचता रहा न जाने कब तलक। 
  
साथ-साथ शायद नाचा किया मैं भी
खोकर होश
खोकर समय और बोध और दिशाएँ सारी
दिगंतों के पार
  
आया होश जब थम गई थीं आँधियाँ, 
थमी बरखा
और पेड़ देख रहा था मेरी ओर
आँखों में शांत बिजलियाँ लिए
प्यार भरी दोस्ताना नज़रों से। 
 
क्या कहूँ, मुझे वह कितना दिलकश
और प्यारा लगा, 
जैसे सारी कायनात उसमें समा गई हो! 

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