एक कवि की दुनिया
प्रकाश मनु
तुम्हारी दुनिया में एक छोटा आदमी हूँ मैं
पर छोटे आदमी की भी एक दुनिया होती है
एक दुनिया बसाई है मैंने
भले ही तुम्हारी दुनिया के भीतर
एक दुनिया है मेरी जागती दिन-रात।
उस दुनिया में बड़े-बड़े विकराल मगरों जैसे
धन-पशुओं का आना मना है,
उस दुनिया में कलफ़दार घमंडी लोग सिर झुकाकर आते हैं
और चलती है ऐसी हवा
कि सीधे-सादे सरल लोगों के दिल की कली खिल जाती है।
उस दुनिया में किसी तख़्तनशीं का राज नहीं चलता
उस दुनिया में कोई ऊपर कोई नीचे
कोई अधीनस्थ नहीं
उस दुनिया में धाराओं-उपधाराओं उप-उपधाराओं
वाला सरकारी क़ानून नहीं
वहाँ दिल की बातें और दिल से दिल के रस्ते और पगडंडियाँ हैं।
इसलिए तुम्हारी दुनिया के थके-हारे आजिज़ आ चुके लोग
वहाँ सुकून पाते हैं
पिटे हुए लोग अक़्सर हो जाते है ताक़तवर
और ताक़तवर लोग अक़्सर बिना बात पीपर पात सरिस
काँपते देखे गए हैं।
उस दुनिया में चलतीं हैं बहसें
निरंतर बहसें
जो हज़ारों वर्ष पहले से लेकर हज़ारों वर्ष बाद तक के
समय में आती-जाती हैं
उस दुनिया में सभी को है अपनी बात ज़ोर-शोर
और बुलंदी से कहने का हक़
और एक बच्चा भी काट सकता है
अपनी किलकारी से
पड़-पुरखों और जड़ विद्वानों की राय!
उस दुनिया में नहीं कंकरीट न कोई
ईंट-पत्थर
उस दुनिया में नहीं कोई मज़बूत सीमेंट मसाला टीवी पर विज्ञापित
फूल से भी हलकी है वह दुनिया
मगर फ़ौलाद से भी सख़्त।
कला और साहित्य की दुनिया के ताक़तवर बाहुबलियो
और परम आचार्यो!
मेरी वह सीधी-सरल फूलों से महक़ती दुनिया कमज़ोर है
मगर इतनी कमज़ोर भी नहीं
कि तुम्हारे जैसे महाबलियों के घमंडी ग़ुस्से फूत्कार और षड्यंत्र से
तड़क जाए!
कल तुमने अपने पैरों से रौंदा था जो घोंसला
नन्ही चिड़िया का
सुनो, ज़रा सुनो—
कि आज फिर उसकी गुंजार सुनाई देती है
सुनाई देती रहेगी
कल-परसों . . . युगांतर बाद भी!