महुआ के फूल
अंजना वर्माभोर-भिनसार गिरे,
फूल महुआ के ।
गंध के चले बाण
बावले हुए प्राण।
पेड़-पेड़ पात-पात
हुई ख़बर प्रात -प्रात।
भौंरे बौराए हैं
पाखी मँडराये हैं
सुध-बुध ही हर लिये
सिर्फ शर छुआ के!
गंध पहचानी है
सूरत अनजानी है।
डोर खींचने लगी
मर्म सींचने लगी।
घाव भी कहीं भरे
दर्द भी हुए हरे।
हवा सखी ले चली
सुगंध को बहाके।