ख़ुशियों के दिन फिर आएँगे

15-06-2021

ख़ुशियों के दिन फिर आएँगे

अंजना वर्मा (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

आँखें  देख रही हैं राह 
अच्छे दिन कैसे आएँगे?
इंसान हुआ बेबस-लाचार
सुख के दिन कैसे आएँगे?
 
किसने बाँधा है हाथों को?
पैरों को जाना मना हुआ 
जीवन के पहिए टूट गए 
है सफ़र वहीं पर रुका हुआ 
छीन लिया किसने आकाश ?
हम कैसे अब उड़ पाएँगे?
 
पहले तो हाथ मिलाते थे
दोस्त गले मिल जाते थे
सब मिलकर बातें करते थे
हँस करके दिन कट जाते थे
यह दूरी बनी गले की फाँस
अब ऐसे क्या जी पाएँगे ?
 
दहशत में दुनिया की साँसें
घुट-घुट करके चलती हैं
उत्सव-मेले अब गए कहाँ?
शंकाएँ दिल में पलती हैं
त्योहार हुए हैं अब इतिहास
सहमे-सहमे क्या गाएँगे?
 
तालों के बंधन टूटेंगे
चाभी तो मिल ही जाएगी
फिर से हँसकर जीने की भी
आज़ादी मिल ही जाएगी
हो जाएगा निर्भय संसार
ख़ुशियों के दिन फिर आएँगे

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