चाँद जी!
अंजना वर्माआज शरद पूर्णिमा को
चमक रहे चाँद जी!
फ़ुर्सत ही फ़ुर्सत है
आपको जो घूमते हैं
जाम है ना काम है
मन का ही करते हैं
पढ़िए स्कूल में तो
समझिए, चाँद जी!
हमें भी तो पढ़ने से
समय कहाँ मिलता है?
स्कूल-होमवर्क में
रात-दिन निकलता है
आपको भी देख नहीं
पाता हूँ, चाँद जी!
पढ़ता-झपकता हूँ
अक़्सर ही रात में
सो जाता टेबल पर
क़लम लिए हाथ में
माँ मुझे नींद में
खिलाती है, चाँद जी!
मम्मी ने खीर बना
रख दी है आज, सर!
चाँदनी की चाशनी
घोलिए रात-भर
सुबह खीर खा कहेंगे
“थैंक यूँ! चाँद जी!”
(टेडी डे! बोलो ना! से)