कोरे पन्नों पर रंगों-सी चुलबुल करतीं बेटियाँ
अंजना वर्माकोरे पन्नों पर रंगों-सी चुलबुल करतीं बेटियाँ
बाग़ों में फूलों की कलियों-सी हैं दिखतीं बेटियाँ
पहले घर में अब बाहर भी अनगिनत दीपक बालतीं
आँगन से बाहर तक जग को रोशन करतीं बेटियाँ
कोस हज़ारों जाकर भी तो दूर कहाँ वे हुईं कभी ?
दुखते घावों पर मरहम बन कर हैं लगतीं बेटियाँ
बहती नदिया की जलधारा जो जीवन को पोसतीं
हर साँचे में ढल जाती हैं जल-सी बहतीं बेटियाँ
तितली कोमल पंखों से भी चंदा तक उड़ चली गई
तोड़ सितारे भी धरती पर लाया करतीं बेटियाँ
क़दम-क़दम पर आखेटक बैठे हैं उनकी राह में
फिर भी हिम्मत करके रस्ता चलती रहतीं बेटियाँ