खो गया कहीं
अंजना वर्माखो गया कहीं,
वक़्त दो पलों का भी, है बचा नहीं।
एक-एक करके दिन, बीतते हैं जाते सब।
क़ैद अपनी दौड़ में, सबको भागना है अब।
रात - दिन वही,
मौसमों के रंग अब दिख रहे नहीं।
बंद इस हवा में रहता रोज़ इंतज़ार है।
बहने को मचल रहा सिमटा-सिमटा प्यार है।
बूँद - बूँद ही,
बहना ज़िन्दगी है अब, चल रही घड़ी।
रोटियों की दौड़ क्यों अंतहीन हो गयी?
बदले में तमाम ही उम्र खींच ले गयी ।
फ़ुरसतें नहीं,
कतरनों में कह रहे कहानियाँ सभी।