झोले और प्लास्टिक के थैले

15-06-2022

झोले और प्लास्टिक के थैले

अंजना वर्मा (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

कितना अच्छा था जब सूती
झोले लेकर हम जाते थे
और कई सामान-सब्जियाँ
उसमें लेकर लौट आते थे
 
गेहूँ, चावल, आटा, चीनी
और मसाले कई तरह के 
तरकारी, दालें या कुछ भी 
आता था उनमें ही भरके 
 
छोटे, मँझले और बड़े 
थैलों ने जीवन थाम लिया था 
घर में झोले बन जाते थे 
बाज़ारों का काम ही क्या था? 
 
पत्तों के सुंदर दोनों में 
तब मिलती थी विविध मिठाई
परिचित मुस्कानों के संग 
हमको पकड़ाता था हलवाई
 
और दावतों में पत्तल का 
होता था खुलकर उपयोग
बिछी दरी पर बैठ पाँत में 
लोग उड़ाया करते थे भोज 
 
पत्तल भी बेकार न जाता 
सड़कर भी कुछ दे जाता था
इस धरती को उर्वर करने 
में कितना काम आ जाता था
 
अब तो पॉलिथीन के थैलों
से भर गए समुद्र अछोर
प्लास्टिक का कचरा ऐसा है
जिसका कोई ओर न छोर
 
नदियों में, नालों में दिखते 
और सड़क पर, मैदानों में 
कूड़ों पर, रेलों की पटरी 
पर पार्कों औ' वीरानों में
 
सर्वव्याप्त दिखता वसुधा पर 
कई शक्ल में जो पसरा है 
प्लास्टिक दुनिया का संकट 
है, सबसे भारी ख़तरा है 
 
पत्तल जलकर राख बने तो
माटी माटी में मिल जाए 
पर प्लास्टिक जलकर विलीन हो
नभ में ज़हरीली बन छाए
 
वसुधा पर ओज़ोन परत जो 
रवि-किरणों को छाना करती 
पॉलिथीन जलकर उसको ही
छेद बनाकर फोड़ा करती 
 
हितकारी ओज़ोन परत यह
जब छलनी हो जाएगी
तब सारे दुनिया के जीवों 
पर आफ़त आ जाएगी
 
चलो दोस्तों! अभी तो तुम 
इस प्लास्टिक से तोड़ो नाता
दुश्मन अगर गुणी भी हो तो 
ज्ञानी पास नहीं है जाता 
 
एक दिवस यह सूद सहित 
ले लेगा जो देता है आज 
प्लास्टिक की सब सुख-सुविधाएँ
बन जाएँगी मृत्यु का साज़ 
 
रक्तबीज-सा अजर-अमर है
 रचना तो तुम ही करते हो 
लेकिन इसे बनाकर बोलो
 मिटा कभी क्या तुम सकते हो? 
 
(टेडी डे! बोलो ना! से) 

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