चाँद-तारे खो गए
अंजना वर्माजब से आँगन गुम हुआ
चाँद-तारे खो गए
अब नहीं कोई हमारे
वे पराए हो गए
शाम को नानी के क़िस्से
और पलकों का झपकना
बीच में ही बोलती थीं
“खा लो, बिन खाए न सोना”
पोथियों के बीच बच्चे
अब सयाने हो गए
खुला था आकाश उसमें
बादलों की दौड़ थी
चाँद का चेहरा ढँका
वो बादलों की ओढ़नी
घन बदलते रूप, सब
इतिहास जैसे हो गए
कल तो सबके नाम थे
खग भी था जाना हुआ
अब बग़ल में कौन है?
क्या है पहचाना हुआ?
पेड़-पौधे हैं नहीं
जो हैं वे जंगल हो गए
आज अरसे बाद चमका
चाँद का चेहरा दिखा
है तो वह अपना सगा
पर दूर क्यों इतना लगा?
याद के पन्ने न जाने
कैसे धूमिल हो गये?
समय सबके पास था
द्वार सबके खुले थे
सबका सुख-दुख एक था
मन सभी के मिले थे
अब तो अपने लिए भी
दिन-रात छोटे हो गए
ध्वनि की रफ़्तार से भी
तेज़ दुनिया भागती है
बुद्धि को तो पर मिले हैं
भावनाएँ हाँफती हैं
यह सफ़र मस्तिष्क का है
भाव पीछे हो गए