फ़ेसबुकों की दुनिया 

15-04-2024

फ़ेसबुकों की दुनिया 

अंजना वर्मा (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

फ़ेसबुकों पर सिमटी दुनिया 
अपने दूर हुए हैं
उन रिश्तों के आगे रिश्ते 
सब नासूर हुए हैं 
 
धरती के अंतिम छोरों से 
बँधी लड़ी बातों की 
अपनों से ही कटते जाते
बढ़ती है ख़ामोशी 
टूट रहे शब्दों के सेतु
सब मजबूर हुए हैं
 
माया-दर्पण का आकर्षण 
उत्सव-सा रंगीन है 
पर एकाकी बना आदमी 
भीतर-भीतर दीन है 
कलश प्रेम के भरे हुए थे 
गिरकर चूर हुए हैं 
 
पानी सूख रहा हैअब रस
बचा नहीं है कुछ भी 
अंतस की झीलें सूखी हैं
आँखें भी हैं सूखी
बिखरे छंद, कसैले जीवन 
के दस्तूर हुए हैं

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