फ़ेसबुकों की दुनिया
अंजना वर्मा
फ़ेसबुकों पर सिमटी दुनिया
अपने दूर हुए हैं
उन रिश्तों के आगे रिश्ते
सब नासूर हुए हैं
धरती के अंतिम छोरों से
बँधी लड़ी बातों की
अपनों से ही कटते जाते
बढ़ती है ख़ामोशी
टूट रहे शब्दों के सेतु
सब मजबूर हुए हैं
माया-दर्पण का आकर्षण
उत्सव-सा रंगीन है
पर एकाकी बना आदमी
भीतर-भीतर दीन है
कलश प्रेम के भरे हुए थे
गिरकर चूर हुए हैं
पानी सूख रहा हैअब रस
बचा नहीं है कुछ भी
अंतस की झीलें सूखी हैं
आँखें भी हैं सूखी
बिखरे छंद, कसैले जीवन
के दस्तूर हुए हैं
1 टिप्पणियाँ
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आज का कड़वा सच, सुन्दर