झबरे का दु:ख

23-01-2019

झबरे का दु:ख

अंजना वर्मा

झबरा कुत्ता बाहर बैठा, मन में सोच रहा था
खा - खाकर मैं बोर हो गया, करने को रहा क्या?

दौड़ लगायी मैंने कितनी, हरी लान पर जाकर
बिल्ली पर भी झपटा लेकिन, हुआ नहीं कुछ धाकड़।

तभी दिखाई पड़ी उसे, रखी चप्पल की जोड़ी,
मम्मी भीतर थी उसने, बाहर चप्पल थी छोड़ी।

बड़ी ख़ुशी में सीधे ले भागा झाड़ी की ओर,
लगा काटने मुर्ग मुसल्लम खाये जैसे चोर ।

मम्मी ने जब चप्पल ढूँढ़ी, मिली उन्हें बस सोल,
फीते गायब थे, झबरा भी छुपा, खुली पर पोल।

मम्मी ने तब पूछा, "तुमको चप्पल से क्या लेना?
झबरा बोला, "लाती क्यूँ ना मेरे लिए खिलौना?

भैया- दीदी को लाती हो पुस्तक और खिलौने?
सब जाते स्कूल मुझे ना भेजा तुमने पढ़ने!

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

दोहे
गीत-नवगीत
कविता
किशोर साहित्य कविता
रचना समीक्षा
ग़ज़ल
कहानी
चिन्तन
लघुकथा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो