लू चल रही है 

15-06-2022

लू चल रही है 

मनोज शाह 'मानस' (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

लू चल रही है 
लू लग रही है . . . 
शहरों में भी 
ख़्वाहिशों में भी . . . 
 
पसीना से लथपथ 
नीम के नीचे 
सुस्ता रहे हैं 
सपने भी अपने भी . . . 
 
घिसती चली जा रही है 
ज़िन्दगी . . . 
लड़खड़ाती चली जा रही है 
परिवेश . . . 
 
आ भी जाओ 
प्रिय प्रियतम 
बरसात की रानी
वर्षा कर जाओ शहरों में 
शीतल कर जाओ ख़्वाहिशों में
 
पता तो चले शहरों में 
कितनी ज़िन्दगी है 
कितनी गंदगी है . . . 
 
कुछ पोल खुलें वादों के 
कुछ मतलब परस्त इरादों के
 
एक बार फिर . . ., 
घुटन भरी ज़िन्दगी को 
प्राण वायु दे दो . . . 
जीने के लिए कुछ सपने 
कुछ ख़्वाहिश 
और कुछ आयु दे दो . . .

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