आकाश तुम्हारा है . . . 

15-02-2024

आकाश तुम्हारा है . . . 

मनोज शाह 'मानस' (अंक: 247, फरवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

कमरे में बैठे-बैठे
ताकता रहता हूँ
खूँटी पर लटके दुख . . . 
 
फड़फड़ाते कैलेंडर में
कर्मों का हिसाब किताब . . . 
दोनों किवाड़ों के बीच से
सनसनाती हुई अँधेरों को 
चीरती हुई आती हवाएँ . . . 
जैसे अपनी ही संतान द्वारा
दी गई यातनाएँ . . . 
 
अपनी ही निधानी में
सँजोकर रखी पीड़ाएँ
मन तलछट की तरह
अवसाद के सागर में
बैठकर समेटते हुए आशाएँ! . . .
 
फिर खिड़की से झाँकता
आसमान का एक टुकड़ा
हाथ बढ़ाकर . . .
कानों में बुदबुदाता है 
रख हौसला, देख रंग 
बदलते आसमान का
आँख खोल बाहर आ
कि तेरे हिस्से का 
यह आकाश तुम्हारा है!! . . . 

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