भाग्य की राहों पर
मनोज शाह 'मानस'प्यार तो तुमको ही किया है . . .
तुम मेरे भाग्य में हो
माँग में तुम्हारा हूँ मैं
सिंदूर द्वारा सज्जित
भाग्य में तुम्हारा हूँ मैं
आत्मा द्वारा अर्पित
तुम मेरे आत्मा में हो . . .
या नहीं हो . . .!
वह तो बाद की बात है
मेरे अंतर्मन में
पहले से ही
बस चुके हो
रच चुके हो
सँवर चुके हो . . .
तुम्हें अपना बनाने के लिए
नींदों के सपने बनाने के लिए
तुम मेरे ही होकर रहोगे . . .
ऐसा भी नहीं है . . .!
ऐसी निहित स्वार्थ
अपना ही इच्छार्थ
लेकर तुम्हें चाहा है
ऐसा भी नहीं है . . .!!
दिल का मामला था
फ़ासला फ़ासला था
बस हृदय में एक
मज़बूत हौसला था . . .
जिन्होंने . . .
मुझे अवगत
कराए बग़ैर ही
तुम्हें पसंद कर लिया . . .
चाहा . . .!
सराहा . . .!!
बुनता रहा . . .!!!
उधेड़ता रहा . . .!!!!
तब कहीं जाकर . . .
प्यार तो तुमको ही किया है . . .
चाहत में कोई कमी ना होगी
इश्क़ में कोई नमी होगी
बस . . .!
यह ज़िंदगी
भाग्य के राहों पर
हमेशा प्रतीक्षित रहेगी . . .।
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अनुभूति
- अपना बनाकर . . .
- अपने–पराये
- आकाश तुम्हारा है . . .
- इन्हीं ख़्वाहिशों से . . .
- इश्क़ की ख़ुशबू . . .
- एक जन्म में . . .
- एक दीप जलाना चाहूँ
- एलियन नहीं हूँ मैं
- कर्म और भाग्य . . .
- कुछ पल की मुलाक़ातें...
- गर्मी बेशुमार . . .
- चलते चलते . . .
- चलो मिलकर दीप जलायें
- ढलता हुआ वृक्ष
- तुम्हारा ही ख़्याल
- तुम्हारे लिए . . .
- थोड़ी सी तो राहत दे दो . . .
- दास . . .
- दूसरा अभिमन्यु . . .
- धूप छाँव एक प्रेम कहानी . . .
- नया हिंदुस्तान
- परिवर्तन . . .
- पहले प्रिया थी . . .
- प्रेम पत्र
- फकीरा चल चला सा . . .
- बेवजह
- भाग्य की राहों पर
- मेहमान . . .
- याद बहुत आते हो पापा
- रेत सी फिसलती ज़िंदगी
- लू चल रही है
- श्वेत कमल
- सचमुच चौकीदार हूँ . . .!
- सफ़र और हमसफ़र . . .
- ज़िन्दगी क्या . . .?
- नज़्म
- गीत-नवगीत
- कविता - हाइकु
- विडियो
-
- ऑडियो
-