तुम्हारे लिए . . .
मनोज शाह 'मानस'
मालूम है . . .?
तुम्हें याद है . . .?
मैंने पूछा था
किसी दिन तुमसे
प्रेम की परिभाषा
सम्बन्ध का निकासा
मन की उलझन
दोधार में अटकी
आँखों की तड़पन!
समय कितना हुआ?
मालूम है . . .?
ख़ैर छोड़ो . . .!
लेकिन . . .
किसी दिन तुम
प्रेम मंथन करोगे
इन प्रश्नों पर . . .!
उस वक़्त . . .
ढूँढ़ना स्वयं के भीतर
मन के भीतर
आँखों के भीतर . . .!
मैं वहीं कहीं
सुस्ताते हुए मिलूँगा
तुम्हारे लिए
जवाब लेकर
जवाब देने के लिए . . .!!
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