इश्क़ की ख़ुशबू . . . 

15-05-2022

इश्क़ की ख़ुशबू . . . 

मनोज शाह 'मानस' (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

अर्ध रात्रि की ख़ामोश नीलिमा! 
चाँदनी रात की मदहोश प्रत्यक्षता!! 
खुले आकाश की तरह . . . , 
खुले छत पर! 
 
ऐसे में तुम्हारे क़दमों के आहट! 
मध्यम मध्यम लालटेन की रोशनी . . . , 
हमारे तुम्हारे फ़ासलों के बीच में! 
 
जब जब आते थे मुझे पढ़ाने . . . , 
इश्क़ की किताब . . . , 
हुस्न की सुर ताल! 
 
छेड़ते थे मेरी धड़कन की तार . . . , 
झनक झनक बज उठती थी . . . , 
बेचैन दिल की झंकार! 
 
पलकें भी न झपकाते थे . . . , 
देखते रहते थे लगातार!! 
निहारते रहते थे बेशुमार!!! 
 
मुझे महसूस करना चाहते थे . . . , 
मेरे भीतर समा जाना चाहते थे! 
मेरे ख़ुश्बू में खो जाना चाहते थे!! 
 
ऐसी ख़ुश्बू एक ऐसी महक! 
जो मेरी भीतर से उठती थी . . . , 
जो एक मृग कस्तूरी से निकलती है!! 
 
अपूर्व सुगन्ध में खो जाना चाहते थे! 
उभरती यौवन की गंध में, 
डूब जाना चाहते थे!! 
 
मेरे अन्दर बसी कस्तूरी 
कुण्डल छूना चाहते थे! 
इश्क़ के कमंडल से प्रेम रस . . . , 
पाकर तृप्त होना चाहते थे!! 
 
बेशक मैं बेहोश हो जाऊँ . . . , 
अचेतन हो जाऊँ! 
तुम मुझे सचेतन कर . . . , 
जगाना चाहते थे!!!!! 

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