इन्हीं ख़्वाहिशों से . . . 

01-05-2023

इन्हीं ख़्वाहिशों से . . . 

मनोज शाह 'मानस' (अंक: 228, मई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

ये नदियाँ . . . ये सागर . . . 
मद्धिम मद्धिम बह रहे हैं। 
ये बादल भी . . . 
ग़ुस्से में कुछ कह रहे हैं॥
 
बरसात की झड़ी भी
आहिस्ता आहिस्ता 
गुनगुना रही है . . . 
 
वास्तव में . . . 
ये दर्द . . . ये पीड़ा . . . 
मुझसे ज़्यादा उन्हें हो रही है
 
कहीं दिल टूटने जैसा 
भूस्खलन हो रहा है। 
कहीं आँसुओं की सुनामी में 
सपनों का शहर बह रहा है॥
 
कोई होता . . .! 
कुछ मिल जाता . . .!! 
कोई मिल जाता . . .!!! 
 
इन्हीं ख़्वाहिशों से . . . 
मुझे सिर्फ़ मारा नहीं है . . .। 

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