अपना बनाकर . . . 

01-01-2024

अपना बनाकर . . . 

मनोज शाह 'मानस' (अंक: 244, जनवरी प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

जूठा खाने के बाद प्यार बढ़ता है कहकर
उनका ही जूठा खाकर, झुका सा झुककर
ख़ुद को ख़ुद के ही भ्रम जाल में फँसाकर
दो चार बाराती वन भोज में ही शादी बनाकर
मिट्टी का सिंदूर माँग में प्रेयसी को लगाकर
अपना बनाकर . . .! अपना बनाकर . . .!! 
 
युद्ध को खेल सा समझकर 
खेल को युद्ध सा समझकर 
कभी लड़ते कभी मिलते 
ऐसे मित्रों को 
ऐसे दोस्तों को 
अपना बनाकर . . .! अपना बनाकर . . .!! 
 
सिंचाई करने वाली छोटी नदी को 
बड़ा सागर समझकर
काग़ज़ की नाव बनाकर 
पत्थर के टुकड़ों को मुसाफ़िर बनाकर
खेलने वाला वो खेल खेलकर 
अपना बनाकर . . .! अपना बनाकर . . .!! 
 
मिट्टी को मांस पेशियाँ
पत्थरों को हड्डियाँ
पानी को रक्त, दौड़ती धमनियाँ 
बनाकर . . . बनाकर . . . 
इंसानों का आकार देकर
स्वयं को मिट्टी जैसा
मिट्टी को गोद गोदकर मूर्ति बनाकर
अपना बनाकर . . .! अपना बनाकर . . .!! 
 
उस वक़्त में . . . 
इस वक़्त चाहने वाला ये मन
इस वक़्त . . . 
उस वक़्त को याद करके ये मन
सोच सोचकर यादें कर कर
वो मित्र साथी वो अपनापन
वो खेल . . . खिलौना . . . रंगशाला . . . 
फिर वह सारे खिलाड़ियों
समस्त अनुभूतियाँ और भावनाएँ 
शब्दों में समेटने की सभी संभावनाएँ
गीत कविताओं में समेट समेटकर
अपना बनाकर . . .! अपना बनाकर . . .!! 

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