दर्द-ए-हिंदुस्तान
मनोज शाह 'मानस'एक हिंदुस्तान में कई हिंदुस्तान क्यों हैं।
ख़तरे में यहाँ हर किसी की जान क्यों है॥
इंसानियत नहीं तो फिर वो इंसान क्यों है,
बाहर से सुंदर अंदर से वो शैतान क्यों है।
देखो झोपड़ी में किस तरह गुज़रती हैं रातें,
वह अपने महलों में भी परेशान क्यों है।
किस तरह समझा जाए इंसान को इंसान,
एक चेहरे पे इतने नक़ाबों की शान क्यों है।
क्या है उसका जो ख़ुद लेकर आया हो,
नफ़रत ही फैलाने का लिया ठान क्यों है।
ये भारतवर्ष है शांतिपूर्ण अमन का देश है,
वतन में बसर करते फिर अपमान क्यों है।
हौसला बुलंद कर क़दम आगे बढ़ाओ,
ये नया हिंदुस्तान है फिर हैरान क्यों है।
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