ज़िन्दगी क्या . . .?

15-01-2024

ज़िन्दगी क्या . . .?

मनोज शाह 'मानस' (अंक: 245, जनवरी द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)

 

सात बार लिखता हूँ
नौ बार मिटाता हूँ
अर्थ कुछ आता ही नहीं
ये अक्षर . . . ये अल्फ़ाज़ . . . 
शायद . . ., रूठ गए हैं . . .! 
 
कभी काल अचंभा लगता है
लिखना . . . पढ़ना . . . भी
जानता हूँ या . . .? 
ऐसा लगता है . . .! 
 
उँगलियाँ शिथिल हो जाती हैं
विचार बोझिल हो जाते हैं
बेसुरा हो जाता हूँ
लुप्त हो जाता हूँ
ख़ुद खो जाता हूँ . . .! 
 
अंधकार की सुरंग के भीतर
बेख़बर . . . बेमुरव्वत . . . 
ये अक्षर . . . ये अल्फ़ाज़ . . . 
क़रीब आना ही नहीं चाहते . . .! 
 
जगत में मेरा कहना
ये अक्षर . . . ये अल्फ़ाज़ . . . ही हैं
यही नहीं रहा तो . . .
जीवन क्या . . .? 
ज़िन्दगी क्या . . .??

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
नज़्म
गीत-नवगीत
कविता - हाइकु
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में