अनुभूति
मनोज शाह 'मानस'अनुभूति . . .!
बहती हुई नदियों की . . .
संग संग चल रहे दोनों किनारों की . . .
चलने को संग संग चलते हैं,
परन्तु आपस में मिल नहीं सकते।
आशाएँ . . .!
इन लरजती हुई . . .
महकती हुई . . .
बहकती हुई आँखों की!
किरण आशाओं की . . .!
जीवन वादों की इरादों की . . .
मिलन, जज़्बातों की . . .
भावनाओं की . . .
संग संग देखते हैं जग को,
इश्क़ मोहब्बत को,
परन्तु आपस में मिल नहीं सकते।
इच्छाएँ . . .!
युगों से हारिल हरियाली की . . .!
सदियों से शामिल ख़ुशहाली की . . .!!
गरजते आसमान की . . .
बरसते बादलों की . . .
कड़कती बिजली की . . .
बहकती बदली की . . .
बारिश की बूँदों से तृप्त धरती की।
मिलना तो चाहते हैं धरती आकाश!
मिल नहीं पाते इस धरा पर . . .!
इस वसुंधरा पर . . .!!
क्षितिज पर मिलते हैं।
क़यामत से मिलते हैं॥
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