अनुभूति

15-03-2022

अनुभूति

मनोज शाह 'मानस' (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

अनुभूति . . .! 
बहती हुई नदियों की . . . 
संग संग चल रहे दोनों किनारों की . . . 
चलने को संग संग चलते हैं, 
परन्तु आपस में मिल नहीं सकते। 
 
आशाएँ . . .! 
इन लरजती हुई . . . 
महकती हुई . . . 
बहकती हुई आँखों की! 
किरण आशाओं की . . .! 
जीवन वादों की इरादों की . . . 
मिलन, जज़्बातों की . . . 
भावनाओं की . . . 
संग संग देखते हैं जग को, 
इश्क़ मोहब्बत को, 
परन्तु आपस में मिल नहीं सकते। 
 
इच्छाएँ . . .! 
युगों से हारिल हरियाली की . . .! 
सदियों से शामिल ख़ुशहाली की . . .!! 
गरजते आसमान की . . . 
बरसते बादलों की . . . 
कड़कती बिजली की . . . 
बहकती बदली की . . . 
बारिश की बूँदों से तृप्त धरती की। 
 
मिलना तो चाहते हैं धरती आकाश! 
मिल नहीं पाते इस धरा पर . . .! 
इस वसुंधरा पर . . .!! 
क्षितिज पर मिलते हैं। 
क़यामत से मिलते हैं॥

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