गर्मी बेशुमार . . .
मनोज शाह 'मानस'
गर्मी बेशुमार
धरा तार तार
वसुंधरा आतुर
सक्रिय सुर असुर
कुछ कौतूहल
मन व्याकुल
हृदय में उठे हूक
मन नहीं उत्सुक
किसी का आगमन
किसी का प्रस्थापन
पंछियों ने छेड़े तान
पुलकित गान
चित्त चंचल
उठा हलचल
नभ पर छाए
बादलों के साए
काले-काले मेघ
अंबर अभेद्य
पवन नहीं शीतल
सूखा पड़ा तल
मध्यम मध्यम वेग
लू चल रही आवेग
तुम भी आ जाओ अब
मुझे भी बुला लो अब
कि बारिशों के
है आसार
गर्मी बेशुमार
गर्मी बेशुमार
धरा तार तार।
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