चलते चलते . . . 

01-02-2025

चलते चलते . . . 

मनोज शाह 'मानस' (अंक: 270, फरवरी प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

चलते चलते 
कभी-कभी 
भटक जाते हैं रास्ते 
बनाते-बनाते 
कभी-कभी 
टूट जाते हैं 
सम्बन्ध के धागे। 
 
समझते समझते 
कभी-कभी 
भूल जाते हैं 
हज़ार वचन 
हज़ार बंधन। 
 
लेकिन . . .
सत्य यह भी है 
सम्बन्धी वापस 
आ सकता है . . . 
किसी दिन 
दो राहों पर 
बिछड़कर गए हुए . . . ! 
 
वापस नहीं आए 
तो समझ लेना 
वे लोग बदल चुके हैं। 

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