ख़ुदा हो तुम . . .

15-12-2022

ख़ुदा हो तुम . . .

मनोज शाह 'मानस' (अंक: 219, दिसंबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

तुम्हें क्या बताएँ मेरी निगाहों में क्या हो तुम। 
ख़ुदा से डरते हैं वरना कह देते ख़ुदा हो तुम॥
 
सनम यूँ ही रिहा ना हो सकोगे ज़ेहन से मेरे, 
शिद्दत से दिल में बसे वो जाने वफ़ा हो तुम। 
 
दुआएँ दिल से निकली हैं वक़्त पे क़ुबूल होंगी, 
ख़ुदा से बेहतर माना फिर क्यों ख़फ़ा हो तुम। 
 
आँखें रुक सी गई हैं तुम्हारी तस्वीर देखकर, 
हमनशीं हमनवां ज़िन्दगी का राफ़्ता हो तुम। 
 
नींद, सपने, सुकून, उम्मीदें न जाने कहाँ खो गए, 
दर्दे मोहब्बत की ज़िन्दगी ए बेहतरीन दवा हो तुम। 
 
माँगने पर पूरी कायनात होगी हर मन्नत होगी, 
क़दमों में जन्नत हो आँखों में सारा जहाँ हो तुम। 
 
तुम्हारे बाद मैं जिसकी हो गई वह तन्हाई है, 
ख़्वाबों में ख़्यालों में पुकारती हूँ कहाँ हो तुम। 
 
तुम्हें क्या बताएँ मेरी निगाहों में क्या हो तुम। 
ख़ुदा से डरते हैं वरना कह देते ख़ुदा हो तुम॥

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