ढलता हुआ वृक्ष 

15-06-2022

ढलता हुआ वृक्ष 

मनोज शाह 'मानस' (अंक: 207, जून द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

तुम आना . . . 
मेरे काँपते हुए 
हाथ थाम लेना 
मेरे नयनों में 
अपने नशीले 
नयन मिलाना . . . 
 
अंधकार है . . . 
देखो तो . . . 
यह काली रात 
कितना प्यारा संवाद . . . 
 
तुम्हारे हाथों से 
कहीं सफ़ेद कहीं काले 
दाढ़ी को सहलाना . . . 
 
कोमल . . .! 
सच में तुम्हारे 
कोमल हाथों का 
कोमल स्पर्श . . . 
 
मेरे मन को 
छूते हुए जाओ ना . . .! 
 
मैं एक ढलता हुआ बूढ़ा वृक्ष
तुम अपना सिर 
इस छाती पर 
सहारा लगाओ ना . . .!!

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