कठिन है माँ बनना
डॉ. शैलजा सक्सेनालोग पूछते हैं
कि क्या होना चाहती है बड़े होकर
तो कहती है मुनिया
"माँ!"
समझाने से भी नहीं समझती।
माँ,
सालों से गीली चुन्नी
झटकार कर एकाएक डाल देती है सुखाने तार पर!
मुनिया के बाल सँवारती है प्यार से
ज्ञान का तेल खूब ठोंकती है सिर में
और गूँथ देती है ढ़ेरों सीखें बालों में
फिर बाँध देती है उन्हें प्यार और क्षमा के रिबनों से!
’होम-मैनेजमेंट" के अनेक गुण
मुनिया के कपड़ों पर काढ़ देती है माँ!
रसोई की "इन्वेंटोरी" करते हुए
सिखाती है
"कॉस्ट इफैक्टिव" होने के गुर!
"इन्वैस्टमेंट रिसर्च" के सारे पन्ने खोल देती है माँ उसके आगे
और
बताती है "रिलेशन्स मैनेजमेंट" में
आत्मीयता, मुस्कुराहट, धैर्य, और "प्राब्लम सौल्विंग"
की सारी "सॉफ्ट-स्किल्स"।
एक-एक कर सिखाती है अच्छे "कुक" होने की विधा
उसके "पीपल मैनेजमेंट" से ख़ुश हैं घर के नौकर-चाकर!
माँ,
धीरे-धीरे
बस्ते में किताबों के साथ-साथ रखती जाती है
अपने को हिज्जे-हिज्जे!
बहुत दिनों बाद,
दफ़्तर जाते हुये सोचती है मुनिया,
वाकई,
पिता बनने से कहीं अधिक कठिन है
माँ बनना।
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