क्या तुमको भी ऐसा लगा

क्या तुमको भी ऐसा लगा

क्या तुमको भी ऐसा लगा

डॉ. शैलजा सक्सेना

कवि की मानसिकता पारदर्शी शीशे की तरह होती है। उसकी सारी भावनाएँ, संवेदनाएँ, धारणाएँ कुछ भी छिपते नहीं हैं बल्कि लेखन में उभर कर सामने आते हैं। डॉ. शैलजा सक्सेना की पुस्तक "क्या तुमको भी ऐसा लगा?" में आप पाएँगे कि शैलजा साधारण कवियत्री नहीं है। किसी भी समस्या के लिए भिन्न दृष्टिकोण या अनुभव की प्रतिक्रिया शैलजा की प्रकृति है। परन्तु डॉ. शैलजा की काव्य शैली और भाषा इतनी सहज है कि कविता पाठक के अंतस में उतर कर पाठक की अपनी हो जाती है।

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