हँसी! . . . सावधान! 

01-03-2025

हँसी! . . . सावधान! 

डॉ. शैलजा सक्सेना (अंक: 272, मार्च प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

प्रायः दुख होता है शुद्ध! 
दुख होता है शुद्ध . . . 
आँसुओं में पनीला दर्द चमकता है, 
चीखें होती हैं मुखौटों से मुक्त, 
कराहों में आत्मा झाँकने लगती है। 
प्रायः दुख होता है शुद्ध। 
 
प्रायः हँसी होती है मिलावटी . . . 
हँसी की निचली तहों में छिपा घमंड
फूट पड़ता है चेहरे की लकीरों में, 
निर्लज्ज ठहाके उठते हैं दूसरों को गिराकर
और मुस्कान की वक्रता
लाँघ जाती है नीचता की सीमाएँ, 
प्रायः हँसी होती है बंजर! 
 
दुख प्रायः होता है शुद्ध . . . 
दुख की शुद्धता से निकलती है कला, 
निकलती है कविता, 
निकलते हैं भजन, 
इसी की पुकार क्षितिज के द्वार खोल
निकल जाती है ब्रहांड के कोने-कोने में
स्वाति बूँद ढूँढ़ने! 
 
दुख में होती है शक्ति, 
आँसू में प्रवाह और आवेग, 
चीखों में पहाड़ ढ़हाने का साहस, 
कराह से दरक जाती है धरती . . .! 
 
हँसने वालों को सावधान रहना चाहिये दुख से। 
उनकी हँसी पानी सी फैल तो सकती है सतह पर, 
कुछ बहा नहीं सकती, 
ठहाके बुदबुदों से उठकर, फट जाते हैं, 
मुस्कानों की फिसलपट्टी से गिरे लोग
उठ जाते हैं कपड़े झाड़ कर। 
 
दुख को आदर देना चाहिए
दुख को सहेजना चाहिए
बचाना चाहिए बर्बाद होने या करने से, 
छाती के पंखों में दुबका, सेना चाहिए . . . 
इसी से निकलता है
खोज का नया जीवन, 
नए आविष्कार, 
यह दुख बनाता है पुल
दूसरे दुखों से मिलने को, 
दुख की गीली धरती पर
उगाई जाती हैं मुक्ति की फ़सलें। 
 
दुख की शक्ति को आदर देना चाहिए। 
हँसी को रहना चाहिये शुद्ध
या सावधान! 
क्योंकि प्रायः दुख होता है शुद्ध, 
शुद्ध दुख का साहस समझना चाहिए॥

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
लघुकथा
साहित्यिक आलेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक चर्चा
नज़्म
कहानी
कविता - हाइकु
कविता-मुक्तक
स्मृति लेख
विडियो
ऑडियो
लेखक की पुस्तकें