खो गया कहीं

15-07-2020

खो गया कहीं

अंजना वर्मा (अंक: 160, जुलाई द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

खो गया कहीं,
वक़्त  दो पलों  का भी, है बचा नहीं।


एक-एक करके दिन,  बीतते हैं  जाते सब।
क़ैद अपनी  दौड़  में,  सबको  भागना है  अब।
रात - दिन  वही, 
मौसमों  के  रंग  अब  दिख रहे  नहीं।


बंद   इस  हवा  में  रहता  रोज़  इंतज़ार है।
बहने को मचल रहा सिमटा-सिमटा प्यार है।
बूँद - बूँद   ही,
बहना ज़िन्दगी है  अब,   चल रही  घड़ी।


रोटियों   की दौड़ क्यों अंतहीन  हो गयी?
बदले में  तमाम  ही  उम्र खींच ले  गयी ।
फ़ुरसतें नहीं,
कतरनों  में  कह  रहे  कहानियाँ   सभी।
 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
गीत-नवगीत
किशोर साहित्य कविता
रचना समीक्षा
ग़ज़ल
कहानी
चिन्तन
लघुकथा
साहित्यिक आलेख
बाल साहित्य कविता
विडियो
ऑडियो