वक़्त

हिमानी शर्मा (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

एक वक़्त जिसे वक़्त की रफ़्तार ने पकड़ा
कुछ समझ आया, कुछ समझ की सोच में सिमटा
ना सब्र में गुंजाइश थी, ना किसी इत्तेफ़ाक़ ने जकड़ा
दिल बेचैन था लेकिन, अल्फ़ाज़ों ने ख़ामोशी को समेटा
और वक़्त बस . . . 
ख़ुद से रिश्ता निभाने की वजह ढूँढ़ता
 
क्या कहें इसे? 
वक़्त का स्वार्थी होना? 
या ख़ुद से ईमानदार होना? 
वक़्त— अनिश्चित, अपरिभाषीय . . . 
या एक दोस्त? 

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