मित्रता एक अपनत्व
हिमानी शर्माएक साथी जो पास नहीं लेकिन साथ है,
न जाने कब से,
तराशता है मुझे मेरी कमियों पर,
सँवारता है मेरी क़ाबिलियत पर,
न जाने कब से,
जो अक़्सर ख़ुश होता है सफलता में,
पास होता भी है असफलता में,
न जाने कब से,
रास्ता दिखता ही नहीं,
साथ चलता भी है मेरी उलझनों में,
कुछ कहता ही नहीं,
बस मुस्कुरा देता है मेरे बचपने में,
न जाने कब से,
जिसे एहसास है मेरे सपनों का,
और भरोसा है मेरी हस्ती पर,
जो जानता है मुझे मेरे भी नज़रिए से,
न जाने कब से,
क्या इतना काफ़ी नहीं—
किसी रिश्ते में वफ़ादार बनने के लिए?
बिलकुल है,
मित्रता केवल मित्रता नहीं अपनत्व है मेरे लिए
न जाने कब से!
1 टिप्पणियाँ
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What a great message on friendship. Kudos to your writing!
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