न जाने क्यूँ

15-04-2023

न जाने क्यूँ

हिमानी शर्मा (अंक: 227, अप्रैल द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

वो बदल सी रही है न जाने क्यूँ, 
कुछ सहम सी गई है न जाने क्यूँ। 
उसके सपने अलग हैं, हो बहता नदी का पानी यूँ
अब सिमट से रहे हैं, न जाने क्यूँ। 
उसने पाया बहुत कुछ अपने सफ़र में यूँ, 
कि खोई सी रहती है अब, न जाने क्यूँ। 
वो बदल सी रही है न जाने क्यूँ, 
अब ठहर सी गई है, न जाने क्यूँ। 
सहज है बिलकुल, हवा की महक सी यूँ, 
पर चुप सी है अब बिलकुल, न जाने क्यूँ। 
वो बदल सी रही है न जाने क्यूँ, 
फिर बिखर सी रही है, न जाने क्यूँ। 

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