चलो आज फिर कुछ लिखते हैं
हिमानी शर्माताज़ा ताज़ा यादें हैं,
चलो आज फिर कुछ लिखते हैं।
गुज़रा वक़्त आईने में ख़ुद को बटोरे है,
चलो आज फिर कुछ लिखते हैं।
वो परीक्षाओं से पहले, तैयारियों की गुनगुनाहट हो,
या फिर उनके ख़त्म होते ही ख़ुशी का हो अनुमोदन,
शुरूआत स्कूल की अठखेलियों से कर,
चलो आज फिर उन पलों में ख़ुद को परखते हैं,
चलो आज फिर कुछ लिखते हैं।
वो कॉलेज के पहले दिन का उत्साह हो,
या हो गूँजती खिलखिलाती मुस्कुराहटें,
फिर कुछ सालों का ही क्यों ना सही,
बस हो अपने चुने हुए साथियों का साथ,
वो लाइब्रेरी में जाने का बस शौक़ मात्र हो,
और पढ़ाई बस परीक्षा ही से पहले करने की ज़िद,
लम्हा लम्हा ख़ुद को एक काग़ज़ में लपेटे हैं,
चलो आज फिर कुछ लिखते हैं।
एक मोड़ पर ठहर सी गई है ज़िन्दगी अब,
ना चलने का उत्साह है और ना ही
किसी ठहराव की उम्मीद,
बस व्यक्तित्व सभी के यहाँ,
एक नक़ाब में ख़ुद को समेटे हैं,
चलो आज फिर कुछ लिखते हैं।
1 टिप्पणियाँ
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Incredible!