साथ उनका
हिमानी शर्मापहचान हो दिल से दिल की कुछ यूँ,
चेहरे से शख़्सियत कहाँ मिलती है।
आज़ाद हो रिश्ते की उम्र कुछ यूँ,
शब्दों से मोहब्बत कहाँ मिलती है।
आग़ाज़ हो साथ का उनके इस क़द्र,
खोयी अमानत यूँ फिर कहाँ मिलती है।
विश्वास हो क़ुदरत के फ़ैसले पर यूँ,
बेफ़िक्री में शिकायत कहाँ मिलती है।
अरमान हो दोनों को एक दूजे का यूँ,
एक नींव को सजावट कहाँ मिलती है।
आयाम दोनों के पहलू में ऐसा,
नज़रों की शोभा नज़रों में कहाँ मिलती है।