आज़माइश
हिमानी शर्माना समझा किसी ने और न कोशिश कभी की,
जब दर्द में रही वो, आज़माइश तभी की।
वो रहती जब साथ तब, चेहरों पर हँसी थी,
ना सोचा किसी ने आँखों में, उसके भी नमी थी।
सराहा नहीं जब, वो आगे बढ़ी थी,
तराशा जब, तब बिखरी वो पड़ी थी।
रोका सभी ने जब चलने लगी थी,
और टोका उसे तब तब, जब कहने लगी थी।
हुनर में उसके कहीं कुछ तो कमी थी,
वरना ऐसी कहानी, किसी की नहीं थी।
उसने समझा सभी को, क्यों ज़रूरत सभी की,
पर टूटा वहीं कुछ जहाँ चुप हो रही थी।
ना समझा किसी ने और न कोशिश कभी की,
ना जाना उसे और ना गुंजाइश बची थी।
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