की बात है
हिमानी शर्माख़्वाहिशें सिमट जाया करती थीं छोटी सी बंदिशों में,
ये उस मौसम की बात है।
हलकी सी महक उस ऋतु की ख़ुश कर जाया करती थी,
ये उस आलम की बात है।
हमारे मिज़ाज भी अलग क़िस्म के थे उस वक़्त,
मुश्किलें आकर ख़ुद ही चली जाया करती थीं,
ये उस अंदाज़ की बात है।
नज़रों को किसी की तलाश नहीं थी,
ज़ेहन में किसी की आस नहीं थी,
अनजान हँसते चहरे देख, मैं ख़ुद भी चहक जाया करती थी,
ये उस ईमान की बात है।
बातों को वजह की ज़रूरत कहाँ थी,
सपनों की तब कोई सूरत कहाँ थी,
एक सफलता अनेक इरादे मज़बूत कर जाया करती थी,
ये उस आयाम की बात है।
ख़्वाहिशें सिमट जाया करती थीं छोटी सी बंदिशों में,
ये उस मौसम की बात है।
हलकी सी महक उस ऋतु की ख़ुश कर जाया करती थी,
ये उस आलम की बात है।
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