तुमसे मिली थी
हिमानी शर्मा
एक पहर ने छुआ जब मैं तुमसे मिली थी,
रूह को कुछ तो हुआ जब मैं तुमसे मिली थी,
अजब सी रोशनी एक आँखों में उठी थी,
जब क़दमों को देखा तो मैं तुमसे मिली थी,
एक मुलाक़ात यूँ लेकिन काफ़ी नहीं थी,
इस सफ़र की उलझन कहीं तो बड़ी थी,
मन ने माना ही नहीं कि मैं तुमसे मिली थी,
और जब देखा तुम्हें, मैं तुमसे मिली थी।
सपना जब हक़ीक़त बनने लगा था,
रस्तों पर चलकर मैं कुछ तो थमी थी,
थामा जब तुमने कुछ यूँ मुझे तब,
निशानों पर चलकर मैं कुछ तो हँसी थी।
मिलकर मैं तुमसे कुछ ख़ुद से मिली थी,
होकर मैं तुम्हारी कुछ अपनी हुई थी,
मैंने जाना नहीं कि मैं तुमसे मिली थी,
और नज़रों को देखा तो मैं तुमसे मिली थी।
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