मैंने देखा है
हिमानी शर्माएक उम्र बीत जाती है ख़ुद को बदलने में,
मैंने एक पल में बदलते देखा है।
आदतों को निखरते, कोशिशों को सँवरते देखा है,
मैंने बिन मौसम बारिशों को बरसते देखा है।
ख़्वाहिशों को खनकते, बंदिशों को छलकते देखा है,
मैंने कई मौसम के तूफ़ानों को बिखरते देखा है।
कमियों को उभरते, ख़ूबियों को पनपते देखा है,
मैंने तपती दोपहरी को ठंडी छाँव में सिमटते देखा है।
एक उम्र बीत जाती है ख़ुद को बदलने में,
मैंने एक पल में बदलते देखा है।
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