मेरी तरह
हिमानी शर्मामुझमें है वो कुछ मेरी तरह,
उसका आना मानो,
किसी दुआ का क़ुबूल होने की तरह,
कुछ मिला हो मानो सवालों के जवाबों की तरह,
लेकिन जानना है उसे कुछ उसकी तरह,
तराशकर अपनी कमियों को,
बनना है मुझे भी कुछ उसकी तरह,
क्या रोक लूँ उसे एक बारिश की तरह,
या बह जाने दूँ बस हवा की तरह,
अनेकों कश्मकशों के बावजूद,
क्यों चलना है उसके साथ मुझे . . .
एक मुसाफ़िर की तरह?
मुझमें है वो कुछ मेरी तरह,
बनना है मुझे अब कुछ उसकी तरह।
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