उन्हें भी दिखाओ
आलोक कौशिकमहँगाई की मार
बेकारी का ख़ंजर
मुर्दों की क़तार
अस्पतालों का मंज़र
कोई तो राष्ट्र के
रहबरों को बुलाओ
जो दिख रहा मुझे
उन्हें भी दिखाओ
क़ैद में है बचपन
छिन गई है मुस्कान
लाचार है लड़कपन
सूना है हर मैदान
कोई तो राष्ट्र के
रहबरों को बुलाओ
जो दिख रहा मुझे
उन्हें भी दिखाओ
बेबस हैं वृद्ध यहाँ
गल रही है जवानी
गीदड़ बना है गिद्ध
देख प्रजा की परेशानी
कोई तो राष्ट्र के
रहबरों को बुलाओ
जो दिख रहा मुझे
उन्हें भी दिखाओ
सड़कों पर सन्नाटा
है घरों में ख़ामोशी
व्यापार में घाटा
हो रही ख़ुदकुशी
कोई तो राष्ट्र के
रहबरों को बुलाओ
जो दिख रहा मुझे
उन्हें भी दिखाओ
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