विवाह, विश्वासघात और हत्या: एक मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक अध्ययन
आलोक कौशिक
विवाह भारतीय समाज की एक पवित्र संस्था मानी जाती है, जो प्रेम, विश्वास, और समर्पण पर आधारित होती है। लेकिन वर्तमान समय में ऐसी घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है जहाँ पत्नियाँ अपने प्रेमी के साथ मिलकर अपने पति की हत्या तक कर डालती हैं। यह न केवल एक जघन्य अपराध है, बल्कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक रूप से गंभीर चिंता का विषय भी है। यह आलेख इन्हीं पहलुओं की गहराई से पड़ताल करता है।
1. मनोवैज्ञानिक पक्ष
(क) व्यक्तिगत असंतोष और भावनात्मक असुरक्षा
जब विवाह में भावनात्मक जुड़ाव, संवाद और आपसी समझ की कमी होती है, तो कई बार पत्नी को ऐसा महसूस होता है कि वह उपेक्षित या प्रताड़ित हो रही है। यह असंतोष धीरे-धीरे अवसाद, आक्रोश और घृणा में बदल सकता है।
(ख) प्रेम का अंधत्व और अपराध के प्रति संवेदनशून्यता
अवैध प्रेम संबंधों में अक्सर भावनाएँ विवेक पर हावी हो जाती हैं। प्रेमी के साथ नया जीवन शुरू करने की चाहत इतनी प्रबल हो जाती है कि पत्नी अपने पति को एक ‘बाधा’ के रूप में देखने लगती है—और जब प्रेमी उसका साथ देता है, तो यह भावनात्मक सहयोग हत्या जैसे अपराध तक ले जाता है।
(ग) मनोरोगीय प्रवृत्तियाँ
कुछ मामलों में महिला में ‘नार्सिसिस्टिक पर्सनैलिटी डिसऑर्डर’ या ‘एंटी-सोशल टेंडेंसी’ पाई जाती है, जहाँ उसे अपने कर्मों से कोई पश्चाताप नहीं होता। वह केवल अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है।
2. सामाजिक कारण
(क) विवाह संस्था में गिरता विश्वास
शहरीकरण, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और विवाह में पारिवारिक भूमिका की कमी ने विवाह को एक अनुबंध जैसा बना दिया है। अब यह जीवनभर का बंधन कम, और सुविधानुसार निभाई जाने वाली साझेदारी अधिक होता जा रहा है।
(ख) सोशल मीडिया और डिजिटल एक्सपोजर
मोबाइल, सोशल मीडिया, और मैसेजिंग ऐप्स के कारण महिलाओं और पुरुषों को अपने विवाह से बाहर रिश्ते बनाने की सुविधा मिली है। ये संबंध कभी-कभी इतना गहरा रूप ले लेते हैं कि वे हत्या जैसी चरम सीमाओं तक पहुँच जाते हैं।
(ग) पारिवारिक और सामाजिक दबाव की अनुपस्थिति
पहले समाज और परिवार एक निगरानी की भूमिका निभाते थे, जिससे वैवाहिक संबंधों में मर्यादा बनी रहती थी। आज की एकल जीवनशैली, परिवार से दूरी, और ‘प्राइवेसी’ की अवधारणा ने उस निगरानी तंत्र को कमज़ोर कर दिया है।
3. अपराध की प्रक्रिया और मनोवृत्ति
इन हत्याओं में अक्सर सुनियोजित षड्यंत्र देखने को मिलता है—जैसे पति को नींद की दवा देना, प्रेमी को घर बुलाकर हत्या कराना, फिर साक्ष्य मिटाना और झूठी रिपोर्ट करना। यह दर्शाता है कि यह तात्कालिक क्रोध का परिणाम नहीं, बल्कि एक लम्बी योजना का हिस्सा होता है।
4. क़ानून, समाज और सुधार की ज़रूरत
क़ानूनी दृष्टिकोण से, भारतीय दंड संहिता में ऐसी हत्या के लिए धारा 302 के अंतर्गत कठोर दंड का प्रावधान है, लेकिन इन अपराधों में प्रेमियों की भागीदारी और डिजिटल साक्ष्य की जाँच एक चुनौती बन जाती है।
सामाजिक सुधारों की दृष्टि से, विवाह पूर्व परामर्श, वैवाहिक जीवन में संवाद की संस्कृति, और संबंधों की पारदर्शिता को बढ़ावा देना आवश्यक है।
मनोवैज्ञानिक हस्तक्षेप भी ज़रूरी है—जैसे कि विवाह के दौरान उत्पन्न मानसिक तनावों से निपटने के लिए काउंसलिंग, और यदि कोई विवाहिक जीवन से असंतुष्ट है तो तलाक जैसे वैध विकल्पों को अपनाना।
निष्कर्ष
पति की हत्या जैसी घटनाएँ समाज के नैतिक और मनोवैज्ञानिक संकट की ओर संकेत करती हैं। यह केवल एक अपराध नहीं, बल्कि विवाह संस्था में टूटते विश्वास, बदलते सामाजिक मूल्यों और भावनात्मक विकृति का भी प्रतिबिंब है। इस चुनौती से निपटने के लिए हमें न्यायिक प्रणाली के साथ-साथ सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े उपायों को भी समान महत्व देना होगा।
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