सुनसान दिल में फिर से
आलोक कौशिक
सुनसान दिल में फिर से कोई मीठी बरसात है
तनहा फ़िज़ा में गूँज रही जैसे कोई बात है
खिड़की से झाँकते हुए कुछ ख़्वाब बोल उठे
हर बूँद में छुपी हुई इक चाह-ए-हयात है
काग़ज़ पे भीगते हुए अल्फ़ाज़ ने कह दिया
यादों की भीड़ में कहीं तन्हा सी रात है
बचपन की वो सड़कों पे नावों की रेल है
बूँदों की हर छलाँग में मासूम सी ज़ात है
बिजली की लहरें चीर रहीं रात की चुप्पियाँ
लगता है दिल से हो रही मौसम की बात है
भीगी हुई सी साँसें, सिहरता हुआ बदन
ये इश्क़ है या वक़्त की कोई सौग़ात है
‘कौशिक’ हर घड़ी ये कहे है कोई सदा
बरसात में भी ज़िन्दगी की इक शुरूआत है
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