जीवन (आलोक कौशिक)
आलोक कौशिकमिलता है विषाद इसमें
इसमें ही मिलता हर्ष है
कहते हैं इसको जीवन
इसका ही नाम संघर्ष है
दोनों रंगों में यह दिखता
कभी श्याम कभी श्वेत में
कुछ मिलता कुछ खो जाता
रस जीवन का है द्वैत में
लक्ष्य होते हैं पूर्ण कई
थोड़े शेष भी रह जाते हैं
स्वप्न कई सच हो जाते
कुछ नेत्रों से बह जाते हैं
चाहे बिछे हों पथ में काँटे
लगने लगे मार्ग कठिन
पथिक कभी रुकते नहीं
देखकर बाधा व विघ्न
कोई करता प्रेम अपार
हृदय में किसी के कर्ष है
कहते हैं इसको जीवन
इसका ही नाम संघर्ष है
1 टिप्पणियाँ
-
जीवन का सुंदर चित्रण
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अच्छा इंसान
- आलिंगन (आलोक कौशिक)
- उन्हें भी दिखाओ
- एक दिन मंज़िल मिल जाएगी
- कवि हो तुम
- कारगिल विजय
- किसान की व्यथा
- कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष
- क्योंकि मैं सत्य हूँ
- गणतंत्र
- चल! इम्तिहान देते हैं
- जय श्री राम
- जीवन (आलोक कौशिक)
- तीन लोग
- तुम मानव नहीं हो!
- नन्हे राजकुमार
- निर्धन
- पलायन का जन्म
- पिता के अश्रु
- प्रकृति
- प्रेम
- प्रेम दिवस
- प्रेम परिधि
- बहन
- बारिश (आलोक कौशिक)
- भारत में
- मेरे जाने के बाद
- युवा
- श्री कृष्ण
- सरस्वती वंदना
- सावन (आलोक कौशिक)
- साहित्य के संकट
- हनुमान स्तुति
- हे हंसवाहिनी माँ
- हास्य-व्यंग्य कविता
- बाल साहित्य कविता
- लघुकथा
- कहानी
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-