होली

आलोक कौशिक (अंक: 273, मार्च द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

प्रेम की पिचकारी लाना 
घोलना सौहार्द के सारे रंग 
वृंदावन के फाग गाना 
ऐसे होली मनाना मेरे संग 
 
होलिका संग हो ईर्ष्या दहन
तब लगाना मुझको गुलाल 
निश्छल निःस्वार्थ हो मिलन 
फिर रंग देना हरा या लाल 
 
जब भी आता है फाल्गुन
खिल जाता प्रकृति का यौवन
कुछ ऐसा देना तुम शगुन 
जीवंत हो जाए मेरा जीवन

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