चल! इम्तिहान देते हैं
आलोक कौशिक
भय को भगाकर
पंखों को फैला कर
हौसलों को उड़ान देते हैं
चल! इम्तिहान देते हैं
तू नारी है या है नर
दिखा अपना हुनर
श्रेष्ठ को सम्मान देते हैं
चल! इम्तिहान देते हैं
सत्य को पकड़
चुनौतियों से लड़
ख़ुद को पहचान देते हैं
चल! इम्तिहान देते हैं
कर लें अपना कर्म
यही है हमारा धर्म
फल तो भगवान देते हैं
चल! इम्तिहान देते हैं
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- कविता
-
- अच्छा इंसान
- आलिंगन (आलोक कौशिक)
- उन्हें भी दिखाओ
- एक दिन मंज़िल मिल जाएगी
- कवि हो तुम
- कारगिल विजय
- किसान की व्यथा
- कुछ ऐसा करो इस नूतन वर्ष
- क्योंकि मैं सत्य हूँ
- गणतंत्र
- चल! इम्तिहान देते हैं
- जय श्री राम
- जीवन (आलोक कौशिक)
- तीन लोग
- तुम मानव नहीं हो!
- देखो! ऐसा है हमारा बिहार
- नन्हे राजकुमार
- निर्धन
- पलायन का जन्म
- पिता के अश्रु
- प्रकृति
- प्रेम
- प्रेम दिवस
- प्रेम परिधि
- बहन
- बारिश (आलोक कौशिक)
- भारत में
- मेरे जाने के बाद
- युवा
- श्री कृष्ण
- सरस्वती वंदना
- सावन (आलोक कौशिक)
- साहित्य के संकट
- हनुमान स्तुति
- हे हंसवाहिनी माँ
- होली
- हास्य-व्यंग्य कविता
- बाल साहित्य कविता
- लघुकथा
- कहानी
- गीत-नवगीत
- विडियो
-
- ऑडियो
-