प्रेम दिवस
आलोक कौशिकचक्षुओं में मदिरा सी मदहोशी
मुख पर कुसुम सी कोमलता
तरुणाई जैसे उफनती तरंगिणी
उर में मिलन की व्याकुलता
जवां जिस्म की भीनी ख़ुशबू
कमरे का एकांत वातावरण
प्रेम-पुलक होने लगा अंगों में
जब हुआ परस्पर प्रेमालिंगन
डूब गया तन प्रेम-पयोधि में
तीव्र हो उठा हृदय स्पंदन
अंकित है स्मृति पटल पर
प्रेम दिवस पर प्रथम मिलन